श्रीराम मंदिर

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रामचरितमानस कांड

बाल कांड

राम के जन्म और बाल्यकाल की कथाएं।

अयोध्या कांड

राम के अयोध्या में जीवन, वनवास और पिता दशरथ की मृत्यु।

अरण्य कांड

वन में राम, सीता और लक्ष्मण के अनुभव और सीता हरण।

किष्किंधा कांड

हनुमान से मिलना, सुग्रीव से मित्रता, और बालि का वध।

सुंदर कांड

हनुमान का लंका जाना, सीता का दर्शन, और लंका दहन।

लंका कांड

राम और रावण के बीच युद्ध और रावण का वध।

उत्तर कांड

राम की अयोध्या वापसी, राज्याभिषेक, और राम राज्य की स्थापना।

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रामचरितमानस दोहे

श्री राम की महिमा

"मनुज बिसेष कहाउब करहीं। रामचरन रति धरम न परहीं॥"
अर्थ: मनुष्य जन्म प्राप्त कर भी यदि श्रीराम के चरणों में प्रेम नहीं करता, तो वह धर्म के मार्ग पर नहीं चल रहा है।

भक्त की भक्ति

"रामहि केवल प्रेम पियारा। जानि लेहु जो जान निहारा॥"
अर्थ: भगवान श्रीराम को केवल प्रेम ही प्रिय है। जो व्यक्ति भगवान के सच्चे स्वरूप को जानता है, वह प्रेम से ही उनकी भक्ति करता है।

अहंकार का त्याग

"जहाँ सुमति तहँ संपति नाना। जहाँ कुमति तहँ विपति निदाना॥"
अर्थ: जहां बुद्धि शुद्ध है, वहां विभिन्न प्रकार की संपत्ति होती है और जहां दूषित बुद्धि होती है, वहां संकट ही संकट है।

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

"मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥"
अर्थ: श्रीराम सभी के लिए मंगलमय हैं और हर अमंगल को हरने वाले हैं। वे दशरथ के आँगन में आनंद से विहार करते हैं।

परस्पर प्रेम

"बिनु प्रीति नहीं धरम सनेहू। जौं लगि करम बिचार सनेहू॥"
अर्थ: बिना प्रेम के धर्म भी नहीं होता। जहां प्रेम और करुणा का भाव नहीं, वहां कर्म का विचार भी नहीं होता।

विनम्रता का महत्व

"जो बड़ाई करै निज तोषा। सो जानहु सब भाँति निरोषा॥"
अर्थ: जो व्यक्ति स्वयं की बड़ाई करता है, वह हमेशा दुःखी रहता है क्योंकि उसकी बुद्धि दूषित होती है।